India News: वैश्विक मंडी के बिच बढ़ता भारत में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की रिपोर्ट और बैंक की की ब्याज दरें बढ़ने के मायने
पिछले कुछ समय से मुद्रास्फीति सात प्रतिशत तक पहुंच गई है। ऊंची मुद्रास्फीति के चलते रिजर्व बैंक को नीतिगत ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ रहा है, जिसका असर ग्रोथ पर भी पड़ सकता है। ऐसे में सरकार को मुद्रास्फीति रोकने हेतु ठोस प्रयास करने होंगे।
बेशक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी हालिया रिपोर्ट में भारत की आर्थिक विकास दर का अनुमान 0.8 प्रतिशत घटाकर 7.4 प्रतिशत कर दिया है, पर अमेरिका और चीन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में तेजी से विकास होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के बाद अर्थव्यवस्थाओं में तेजी की संभावनाएं बन रही थीं, पर कई नए संकटों के चलते आर्थिक स्थिति विकट होती जा रही है। इनमें रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण तेल और खाद्य पदार्थों की कमी और महंगाई प्रमुख हैं।
इस कारण दुनिया भर के केंद्रीय बैंक ब्याज दरें बढ़ा रहे हैं, जो विकास के लिए हानिकारक सिद्ध होगा। चीन में लॉकडाउन के कारण दुनिया भर में आपूर्ति शृंखला प्रभावित हो रही है, वहीं अमेरिका में वर्ष के पहले कालखंड में धीमी वृद्धि, गृहस्थों की आमदनी में कमी और संकुचित मौद्रिक नीति के चलते मांग और वृद्धि में कमी का अनुमान लगाया गया है। आईएमएफ के अनुसार, वर्ष 2022 में वैश्विक वृद्धि दर 3.2 प्रतिशत और 2023 में 2.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। यह पूर्व के अनुमानों से क्रमशः 0.4 और 0.7 प्रतिशत कम है।
एक ओर वैश्विक वृद्धि दर के अनुमान घट रहे हैं, वहीं भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था बनी हुई है। अमेरिका में महंगाई की दर 9.1 प्रतिशत और इंग्लैंड में 9.4 प्रतिशत पहुंच चुकी है, जबकि भारत में यह 7.0 प्रतिशत है। हालांकि पिछले पांच महीनों में डॉलर के मुकाबले रुपये का 3.0 प्रतिशत अवमूल्यन हो चुका है। इस बीच रुपये के मुकाबले पौंड का अवमूल्यन 5.1 प्रतिशत, येन का 12.35 प्रतिशत और यूरो का 2.73 प्रतिशत तक हो चुका है। अर्थव्यवस्था के दो प्रमुख क्षेत्रों सेवाओं और मैन्यूफैक्चरिंग में ग्रोथ में सुधार का मापदंड होता है परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई)।
स्टैंडर्ड ऐंड पूअर्स के अनुसार, जून में पीएमआई इंडेक्स 59.2 तक पहुंच गया, जो अप्रैल 2011 से अभी तक का सबसे बेहतर प्रदर्शन है। हालांकि जुलाई में इसमें हल्की कमी दिखाई दी है। फिर भी माना जा सकता है कि भारत का सेवा क्षेत्र अत्यंत बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में पीएमआई इंडेक्स जून में 53.9 से बढ़ता हुआ जुलाई में 56.4 तक पहुंच गया है। विदेशी निवेशकों के पलायन, बढ़ती ब्याज दरों, कमजोर होते रुपये और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी जैसी स्थिति के बावजूद मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र लगातार बेहतर प्रदर्शन कर रहा है।
गैर कृषि कार्यकलापों में वृद्धि का एक अन्य संकेतक जीएसटी प्राप्तियों का होता है। विगत अक्तूबर से जीएसटी की प्राप्तियां लगातार ऊंचे स्तर पर बनी हुई हैं और पूर्व की तुलना में कहीं ज्यादा हैं। अर्थव्यवस्था की दीर्घकालीन वृद्धि और उसकी निरंतरता पूंजीगत वस्तुओं, मध्यवर्ती वस्तुओं और इन्फ्रास्ट्रक्चर वस्तुओं के उत्पादन से मापी जाती है। उस नाते पिछले मई, 2021 की तुलना में मई, 2022 में पूंजीगत उत्पादन में वृद्धि 55 प्रतिशत, मध्यवर्ती वस्तुओं में वृद्धि 18 प्रतिशत और इन्फ्रास्ट्रक्चर वस्तुओं के उत्पादन में वृद्धि 18.2 प्रतिशत आंकी गई है।
हमारे नीति-निर्माताओं की मुख्य चिंता महंगाई है। पिछले कुछ समय से मुद्रास्फीति सात प्रतिशत तक पहुंच गई है। ऊंची मुद्रास्फीति के चलते रिजर्व बैंक को नीतिगत ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ रहा है, जिसका असर ग्रोथ पर भी पड़ सकता है। ऐसे में सरकार को मुद्रास्फीति रोकने हेतु ठोस प्रयास करने होंगे। रूस और ईरान से सस्ते दामों पर कच्चे तेल की खरीद, देश में बढ़ता कृषि उत्पादन, सरकार द्वारा पेट्रोल और डीजल पर टैक्स में कमी समेत कई सराहनीय प्रयास हुए हैं।
वैश्विक स्तर पर खाद्य मुद्रास्फीति, ईंधन की कीमतों में वृद्धि और आवश्यक कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि का सामना करना पड़ रहा है। भारत भी कुछ हद तक उससे प्रभावित हो रहा है। पर बढ़ते कर राजस्व और उसके कारण शेष दुनिया की तुलना में राजकोषीय घाटे पर नियंत्रण के द्वारा मुद्रास्फीति को थामने का प्रयास चल रहा है। मुद्रास्फीति पर नियंत्रण कर लेने से मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देते हुए हम अपनी वृद्धि दर और रोजगार, दोनों बढ़ा सकेंगे|