Top Wheat Varieties: किसानों को मालामाल कर देगी गेहूँ की यह किस्म, सिर्फ तीन पानी में मिलेगी बम्पर पैदावार, जानिए इस किस्म के बारे में। पोषक तत्वों से भरपूर काठिया गेहूं की फसल में रतुआ रोग की संभावना भी कम रहती है. देश-विदेश में बढ़ती मांग के चलते काला गेहूं 4,000 से 6,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिकता है.
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सबसे लोकप्रिय गेहूँ की किस्म जो देती है कम संसाधनों में अच्छी पैदावार
खेती-किसानी को ज्यादा लाभकारी बनाने के लिये हमारे वैज्ञानिक और किसान नये-नये प्रसायकर रहे हैं, जिससे खेती की लागत को घटाकर मुनाफा बढ़ाया जा सके. इसी कड़ी में किसानों को ऐसी किस्मों की खेती करने हिदायत दी जा रही है, जिनकी बाजार मांग ज्यादा हो और कम ससाधनों में खेती करके ही अच्छी पैदावार मिल सके. ऐसी ही किस्मों में लोकप्रिय है गेहूं की काठिया प्रजाति, जिसे काला गेहूं भी कहते हैं. गेहूं के उत्पादों की बढ़ती खपत को पूरा करने में काठिया गेहूं का अहम योगदान है.

गेहू की इस किस्म से बनाई जाती है काफी सारी चीजे
इस किस्म के गेहूं से दलिया, सूजी और रवा के साथ-साथ सेवइयां,नूडल्स, पिज्जा, वर्मी सेली और स्पेघेटी बनाई जा रही है. बता दें कि काठिया गेहूं की फसल पानी की कमी वाले इलाकों के लिये किसी वरदान से कम नहीं है. गेहूं की ये किस्म मात्र 3 सिंचाई में 35 से 60 क्विंटल तक उत्पादन दे सकती है.
जानिए कैसे करे काठिया गेहूं की खेती

भारत में करीब 25 लाख हेक्टेयर या उससे कुछ अधिक क्षेत्रफल में ही काठिया गेहूं की खेती की जा रही है. वहीं गेहूं के उत्पादों की बढ़ती डिमांड के चलते काठिया गेंहू का रकबा भी बढ़ाने की जरूरत है. पोषक तत्वों से भरपूर गेहूं की ये प्रजाति कुछ साल पहले तक सिर्फ उत्तर प्रदेश के किसानों तक ही सीमित थी, लेकिन इसकी खूबियों को परखते हुये अब गुजरात, मध्य प्रदेश, और राजस्थान के किसान भी काठिया गेहूं की खेती में दिलचस्पी ले रहे हैं.
50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है इस गेहूँ की पैदावार
विशेषज्ञों की मानें तो असिंचित या कम वाली इलाकों में भी काठिया गेहूं की खेती करके 30 से 35 क्विंटल तक उत्पादन ले सकते हैं. वहीं सिंचित इलाकों में काला गेहूं 50 से 60 क्विंटल की पैदावार देता है. गेहूं की साधारण किस्मों की तुलना में काठिया गेहूं को बीटा कैरोटीन व ग्लुटीन का अच्छा स्रोत मानते हैं. इसमें बाकी किस्मों के मुकाबले 1.5 से 2 प्रतिशत अधिक प्रोटीन मौजूद होता है. पोषक तत्वों से भरपूर काठिया गेहूं की फसल में रतुआ रोग की संभावना भी कम ही रहती है. देश-विदेश में बढ़ती मांग के चलते काला गेहूं 4,000 से 6,000 रुपये प्रति क्विंटल के भाव पर बिकता है.

जानिए कब की जाती है कठिया गेहूं की बुवाई
देश में धान और गन्ना की कटाई के बाद रबी सीजन में ही कठिया गेहूं की बुवाई की जाती है. इस बीच खेतों में कार्बनिक पदार्थों वाली जैविक खाद और जैव उर्वरकों का प्रयोग फायदेमंद साबित हो सकता है.
- भारत के सिंचित इलाकों में इसकी बुवाई नवंबर के पहले या दूसरे सप्ताह तक की जाती है. वहीं असिंचित इलाकों में अक्टूबर माह से ही इसकी बुवाई का काम शुरू कर देना चाहिये.
- विशेषज्ञों की मानें तो देर से बुवाई करने पर गेहूं की क्वालिटी और उत्पादन पर काफी बुरा असर पड़ता है, इसलिये किसान काठिया गेहूं की अगेती खेती भी कर सकते हैं.
- खेती की लागत को कम करने के लिये सीड ड्रिल मशीन से काला गेहूं की बिजाई का काम कर सकते हैं. इससे उर्वरक और बीजों के साथ-साथ समय की भी काफी बचत होगी.
- काठिया गेहूं की बुवाई से पहले मिट्टी की जांच के आधार पर ही बीज, खाद-उर्वरक और बाकी प्रबंधन कार्य करने चाहिये, जिससे बेहतर उत्पादन मिल सके.
कठिया गेहूं की खेती के लिए करे जैविक खाद का उपयोग

जाहिर है कि काठिया गेहूं की खेती काफी कम क्षेत्रफल में की जाती है. ऐसे में इसका उत्पादन बढ़ाने के साथ-साथ क्वालिटी पर भी फोकस करना जरूरी है. ऐसी स्थिति में काला गेहूं की खेती के लिये सिर्फ कार्बनिक पदार्थों वाली जैविक खाद और जैव उर्वरकों का ही इस्तेमाल करना चाहिये. ध्यान रखें कि नाइट्रोजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी के समय और आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद खेतों में डालनी चाहिये.
3 पानी में काठिया गेहूं की किस्म की फसल हो जाती है तैयार
किसी भी फसल से अच्छी पैदावार हासिल करने के लिये पोषण प्रबंधन के साथ-साथ मिट्टी में पर्याप्त नमी का होना जरूरी है, लेकिन काठिया गेहूं किस्म से खेती करने पर सिर्फ 3 सिंचाई में फसल तैयार हो जाती है. सिंचित इलाकों में काठिया गेहूं की फसल में बुवाई के 25 से 30 दिनों बाद पहली सिंचाई, बुवाई के 60 से 70 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई और तीसरी सिंचाई का काम बुवाई के 90 से 100 दिनों के बाद किया जाता है. कम मेहनत और कम संसाधनों में खेती-किसानी से अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं तो किसानों को काठिया गेहूं यानी काला गेहूं की खेती जरूर करनी चाहिये.