Sunday, March 26, 2023
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State Historical Heritage: मध्य प्रदेश में कुछ ऐसी ऐतिहासिक धरोहरे है जहा की खूबसूरती बया ना कर सके

State Historical Heritage: मध्य प्रदेश में कुछ ऐसी ऐतिहासिक धरोहरे है जहा की खूबसूरती बया ना कर सके मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कई ऐतिहासिक धरोहरें हैं, जहां पर लंबे समय तक इस्लामिक शासकों ने शासन किया है और वहीं उनके पहले गोंड और राजपूत राजाओं ने भी अपने दरबार सजाए हैं। शहर और उसके आसपास ऐसे कई अनगिनत ऐतिहासिक स्मारक बने हुए हैं जो परमार, गोंड और राजपूत शासकों के शासन की याद दिलाते हैं। इनमें से एक हैं भोपाल से 13 किलोमीटर दूर दोस्त मोहम्मद खान का इस्लामनगर, जो कभी गोंड और राजपूत शासकों का जगदीशपुर हुआ करता था। यहां बना गोंड महल अपनी वास्तुगत विशेषताओं के लिए जाना जाता है। वहीं रानी महल की बनावट ऐसी थी कि परिंदा भी पर न मार सके

चमन महल- चमन महल की चार बाग शैली तो मनमोहक है ही। यहां स्थित इन ऐतिहासिक स्मारकों की वजह से जगदीशपुर इस्लामनगर का नाम देश-दुनिया में प्रसिद्धि बनाए हुए है। अभी यह सभी स्मारक मध्यप्रदेश राज्य पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित किए गए हैं, समय-समय पर इनके जीर्णोद्धार का काम विभाग द्वारा कराया जाता है। यहां का इतिहास रियासत कालीन बताया जाता है।इस काल के प्रथम शासक सरदार दोस्त मोहम्मद खान थे, जिन्होंने सन 1715 ई.में जगदीश पुर पर अधिकार कर लिया। इस समय जगदीशपुर का राजपूत शासक देवरा चौहान था। जगदीशपुर का नाम बदलकर दोस्त मोहम्मदखान ने इस्लाम नगर रखा और1719 तक संपूर्ण भोपाल क्षेत्र अपने अधीन कर लिया था।

chaman mehel

गोंड महल- शैलीगत आधार पर इस महल का निर्माण गोंड शासकों द्वारा 17वीं शताब्दी में कराया गया था। जब इस स्थल का नाम जगदीशपुर था और गोंड शासकों के ही अधीन नरसिंह देवड़ा यहां का स्थानीय शासक था। भवन की वास्तुगत विशेषताएं गोंड एवं राजपूत शैली की हैं। पूर्वाभिमुखी भवन के मुख्य प्रवेश द्वार के कोने पर विशाल बुर्ज की संरचना है। त्रितलीय महल दो भागों में विभक्त है।

प्रथम भाग के प्रांगण में चारों और मेहराबदार दालान, आवासीय कक्ष, स्तंभों पर आधारित सभा कक्ष एवं लघु मंदिर हैं।

द्वितीय प्रांगण में मनोरंजन कक्ष, हमाम, गौशाला, घुड़साल, आयताकार उद्यान, क्यारियां एवं फब्बारे हैं।

तृतीय तल पर एक जलकुंड है, जो वर्षा के जल संग्रह का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है।

चमन महल – एक प्रकार से आवृत इस महल के प्रवेश द्वार के समीप बारह द्वारी सहित शीश महल है। सामने का सुंदर उद्यान मुगल शैली में विकसित किया गया है, जिसमें उद्यान के सामने बने प्लेटफार्म में सुंदर नक्काशी एवं जालिकावत अलंकरण हैं। महल की मेहराबें फूलपत्ती अलंकरण से सुसज्जित हैं। महल की स्थापत्यकला उत्तर मुगल शैली की है, जिसमें स्थानीय गोंड शैली के तत्वों का भी समावेश है।

रानी महल -इस महल का निर्माण शैलीगत आधार पर किया गया। महल का पश्चिमाभिमुखी विशाल प्रवेश द्वार आकर्षक है। अंत: प्रांगण के चारों और मेहराबदार बरामदों के साथ चार-चार कक्षों की संरचना है। महल की त्रितलीय संरचना में

प्रथम तल के आवासीय कक्ष मेहराबों एवं स्तंभों से सुसज्जित है। प्रांगण के उत्तर में स्थित बारहद्वारी भी सुंदर मेहराबों एवं अलंकृत स्तंभों से सुसज्जित है।

द्वितीय तल पर खुले बरामदे युक्त चार कक्षों की संरचना है।

तृतीय तल पर छत्रियां बनी हुई हैं जिसमें से एक में गुंबदाकार शिखर की संरचना है। यह इस तरह से बनाया गया है कि रानियों की सुरक्षा में कोई सेंध न लगा सके।

देश-विदेश से आते हैं पर्यटक

इस्लाम नगर महलों को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक आते हैं। आम दिनों में यहां पर लगभग 50 से 100 पर्यटक पहुंचते हैं। वहीं अवकाश के दिन की बात करें तो रविवार को यहां पर्यटकों की संख्या 400 तक पहुंच जाती है। विशेष तौर पर ठंड के मौसम में सभी दिन पर्यटकों के आने का सिलसिला जारी रहता है तो वहीं गर्मी के मौसम में भी पर्यटक आते हैं। वर्षा के मौसम में पर्यटकों की संख्या कम हो जाती है।

यहां पुरातत्व विभाग की तरफ से पर्यटकों के लिए टिकट की व्यवस्था रखी गई है। प्रति व्यक्ति 10 रुपये का टिकट तय किया गया है जबकि फोटो ग्राफी के लिए अलग से शुल्क जमा करनी होती है।

फिल्मो में भी आयी ये ऐतिहासिक इमारते

इस्लाम नगर में बने ऐतिहासिक स्मारक अब बड़े परदे पर भी छाने लगे हैं। पिछले एक दशक से यहां छोटी – बड़ी फिल्में, डाक्यूमेंट्री, नाटक आदि के दृश्य फिल्माएं गए हैं। बड़े परदे की फिल्म दुर्गामती के दृश्य भी यहां फिल्माएं गए थे। इसके लिए यहां पर काफी बड़ा सेट तैयार किया गया था।

11 शताब्दी की मुर्तिया और खण्डार है मोंजूद

इतिहासकार पूजा सक्सेना ने बताया कि इस्लाम नगर में आज भी परमार कालीन मूर्तियां और मंदिरों के अवशेष हैं। यहां पर लगभग एक हजार साल पहले 11वीं सदी में परमारों का शासन रहा होगा। वहीं 16वीं और 17वीं शताब्दी में गोंड शासकों ने यहां शासन किया। इसके बाद राजपूत राजाओं ने शासन किया, फिर इस्लामिक शासन आया। यहां पर दोस्त मोहम्मद खान ने शासन किया। पहले इसे जगदीशपुर ही कहा जाता था दोस्त मोहम्मद खान ने इसका नाम इस्लाम नगर रख दिया था।

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